भारत -चीन व्यापार {Indo- China Trade}
"हम अपने दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं "-अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा कहा गया यह बोल चीन से हमेशा मेल खाता आया हैं, और आज भी प्रासंगिक हैं। चीन द्वारा की गई गतिविधियाँ यह साफ़ ज़ाहिर करती हैं, कि वह किसी भी हालत में सीमा विवाद को ख़त्म करना ही नहीं चाहता हैं। यदि भारत ने सीमा के पास आधारभूत संरचना (Infrastructure) बनाई हैं, जैसे- गाँव का विकास ,ब्रिज ,सुरंगे ,सड़के और रेलवे आदि तो चीन ने भी अपनी सीमा की तरफ पूरी तैयारी कर रखी हैं। इस तरह के दोनों देशों के बीच सीमा तनाव से व्यापार प्रभावित हो न हो, किन्तु स्थानीय लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
एक सवाल जो सबके मन में आता हैं, कि भारत और चीन के बीच हुई इतनी सीमा झड़पों के बाद भी व्यापारिक संबंध खत्म या कम क्यों नहीं हुए ? भारत और चीन के व्यापारिक संबंध खत्म करने की मांगों पहले भी उठती रही हैं। पहले गलवान घाटी से समय भी यह मांग की गयी थी परन्तु आश्चर्य की बात यह हैं की गलवान घाटी संघर्ष के बाद चीन से भारत का आयात में वृद्धि देखी गयी थी। और अब तवांग जिले में घुसपैठ के बाद यह मुद्दा एक बार फिर गरमा गया हैं। आज की चर्चा का मुद्दा यही हैं, आइये देख़ते भारत - चीन के व्यापारिक संबंध --
व्यापारिक भागीदारी :-
- चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदारी हैं। 2021 -22 में, भारत- चीन का द्विपक्षीय व्यापार $115.83 बिलियन हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का पहला सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदारी हैं। भारत-अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार $119.48 बिलियन हैं।
- भारत के कुल उत्पादों का व्यापार के रूप में $1,035 बिलियन हैं।
पिछले 2 दशकों में चीन की स्थिति
2001-2012 में चीन 10 वे स्थान या उससे नीचे था।
2000-2001 में 12 वाँ स्थान ,
1999-2000 में 16 वाँ स्थान,
1998-89 में 18 वाँ स्थान पर रहा।
2002 -2003 में उछाल देखने को मिला
2011 -2012 में चीन भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदारी बनकर उभरा।
2012 -2013 संयुक्त अरब अमीरात भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदारी बना।
2013 -2014 से लेकर 2018 तक चीन भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदारी बना रहा।
2018 -2020 इन 2 वर्षों में अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदारी था।
व्यापार घाटा
व्यापार घाटा से मतलब हैं कि जब हम किसी देश से आयात ज्यादा करें तथा निर्यात कम करते हैं।
व्यापार अधिशेष का अर्थ हैं कि जब हमारा किसी देश से आयात कम और निर्यात ज्यादा करते हैं।
- अमेरिका के साथ 2021 -22 में भारत का व्यापार अधिशेष $32.85 बिलियन रहा।
- चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा $73.31 बिलियन हो गया हैं।
- चीन से भारत का आयात 2001 -2002 में $2 बिलियन 2021 -22 में $94.57 बिलियन हो गया हैं। साथ ही2021 -22 में पिछले वर्ष के स्तर ($44.02 ) से दोगुना हैं।
- चीन को भारत से निर्यात - लगभग $1 बिलियन से बढ़कर $21 हुआ हैं।
- चालू वर्ष / पहले महीनों के दौरान चीन से साथ भारत का व्यापार घाटा $51 बिलियन का हैं।
- और पिछले वित्त वर्ष ($37 बिलियन) की तुलना में यह ज्यादा हैं।
हम जितने भी देशों के साथ व्यापार घाटे में उसमें एक - तिहाई हिस्सा चीन का हैं।
2021-22 में भारत के शीर्ष 8 व्यापारिक साझेदार कौन हैं -
- संयुक्त अरब अमीरात
- सऊदी अरब
- इराक
- सिंगापुर
- हांगकांग
- इंडोनेशिया
- दक्षिण कोरिया
- ऑस्ट्रेलिया आदि।
गलवान में झड़प के बाद चीन से आयात ?
आंकड़ों के अनुसार, कोविड -19 लॉकडाउन के बाद आयात में वृद्धि हुई हैं। जून 2020 में $ 3.32 बिलियन था, वही जुलाई 2020 में $ 5.58 बिलियन तथा इस साल जुलाई में $ 10.24 बिलियन हो गया। 2021-22 में भारत कुल आयात $ 613.05 बिलियन रहा हैं।
उपयुक्त आंकड़ों से साबित है कि सीमा तनाव के बाद भी की चीन से भारत के व्यापारिक संबंधों में कमी नहीं निरंतर वृद्धि हुई हैं।
आयात वस्तुएं कौन-सी हैं -
- विद्युत मशीनरी, उपकरण, पुर्जे
- साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन
- परमाणु रिएक्टर, मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, पुर्जे
- जैविक रसायन, उर्वरक
- प्लास्टिक और वस्तुएं आदि।
निर्यात वस्तुएं कौन-सी हैं -
2021-22 में चीन को भारत का निर्यात $ 21.25 बिलियन रहा तथा भारत के कुल शिपमेंट ($422 बिलियन) को 5 % हैं। कुछ शीर्ष निर्यात वस्तुएं --
- अयस्क और रॉक
- कार्बनिक रसायन
- खनिज ईंधन और खनिज तेल
- लोहा और इस्पात
- एल्युमिनियम और उससे बानी चीज़े
- कपास आदि।
चीन से व्यापार कम न करने कारण -
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला - चीन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं,चीन की वस्तुएं बहुत सस्ती हैं, तथा लोगों के बहुत आवश्यक हैं। हर व्यक्ति महंगी या गुणवत्तापूर्ण वस्तुएं नहीं खरीद सकता हैं। और चीन के वस्तुएं भारत में निम्न वर्गों के लोगों के जीवन को सरल बनती हैं।
- भारतीय कंपनियों की निर्भरता - भारत की कई कम्पनियाँ कच्चे माल के लिए चीनी कंपनियों पर निर्भर हैं। 'मेक इन इंडिया' और 'Assemble In India' जैसे अभियानों के लिए कच्चा माल कम पड़ सकता हैं। साथ ही देश में बेरोजगारी बढ़ने की संभावनाएं बन सकती हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुंचा सकती हैं।
- वैश्विक संस्थाओं का दबाव - भारत ऐसी ही चीन कंपनियों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता क्योंकि भारत पर कई वैश्विक संस्थाओं का दबाव होता हैं। एशियाई विकास बैंक, एशियाई बुनियादी ढांचा और निवेश बैंक तथा विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने भारत में निवेश कर रखा हैं जिसमे चीनी कम्पनिया भी शामिल हैं।
- इन्वेस्ट इंडिया - भारत के इन्वेस्ट इंडिया प्रोग्राम के तहत बाहरी/ विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना। ऐसे ही कई चीनी कंपनियों ने भारत में इन्वेस्ट कर रखा हैं। वर्तंमान समय में लगभग 800 विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश कर रखा हैं। और प्रतिबंध भारत की छवि क नुकसान पहुँचा सकता हैं।
भारत क्या कर सकता हैं -
- चीनी कंपनियों के साथ सुरक्षा निरीक्षण के साथ तर्कसंगत और पारदर्शिता को बरतना।
- घरेलू नीति में बदलाव करना बहुत ज़रूरी हैं, ताकि हम चीनी कंपनियों पर अपनी निर्भरता को कम कर सकें। और मेक इन इंडिया के तहत यह इतना मुश्किल नहीं होगा यदि हम उन वस्तुओं का निर्माण भारत में ही करें।
- ठोस आर्थिक कूटनीति का निर्माण करना जिससे भारत पर सीमा से साथ आर्थिक तनाव न पड़े। या चीन के स्थान पर नए विकल्पों की खोज करना।
- India Strategic Trade Agency का निर्माण करना। जो इस तरह को सभी परिस्थितियों पर नज़र रखने का काम करें।
उपयुक्त से एक चीज़ साफ़ हो जाती हैं,कि अगर भारत को चीन से व्यापारिक सम्बन्ध खत्म करने हैं तो भारत को एक आर्थिक शक्ति बनना होगा। क्योंकि चीन ने हम पर सामरिक और आर्थिक तनाव दोनों बना रखा हैं। भारत को द्वितीयक बाज़ार (Product Manufacturing) को मजबूत करने की बहुत ज़रूरत हैं। तथा कच्चा माल भारत में ही बनाना।
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