21वीं सदी में ऐसी ही कोई सीमा प्रतीत नहीं होती है, जो गांव तथा शहर को विभाजित करती हो। वर्तमान समय में हम देखें तो ग्रामीण और शहरी इलाकों में कुछ खास अंतर प्रतीत नहीं है, क्योंकि गांव की अधिकतर आबादी ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रही है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ग्रामीण इलाकों में भी सड़क, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जैसे सेवाओं की उपलब्धता में निरंतर वृद्धि हो रही है। शहर अर्थव्यवस्था के केंद्र हैं इसीलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों के अनुपात में शहरी क्षेत्रों का इंफ्रास्ट्रक्चर तथा सेवा की गुणवत्ता ग्रामीण इलाकों से एक बेहतर स्थान रखती हैं।
What is Rural-Urban Continuum
Rural-Urban Continuum शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1930 में Robert Redfield द्वारा किया गया था। जो मेक्सिको में टेपोज्टलान किसानों (Tepoztlan peasants) के साथ अपने शोध के आधार पर था।
ग्रामीण और शहरी निरंतरता (continuum) से तात्पर्य है कि गांव और शहरों का विलय (merging) कर दिया जाए। तथा Rural-Urban Continuum महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नीति निर्माताओं को ग्रामीण और शहरी समुदायों के बीच के अंतर को समझने में सहायता करता है।
यह शोधकर्ताओं को इन समुदायों के सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं के अध्ययन करने में भी सहायक है। जब भारतीय सरकार नीतियों का निर्माण करें तो उसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के विकास की नीति एक साथ करें क्योंकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र एक दूसरे के पूरक हैं तो इनके विकास की नीतियां भी एक समान होनी चाहिए।
क्या ग्रामीण -शहरी विकास आपस में जुड़े हुए हैं? (Is Rural - Urban Evolution Interconnected ?) :
हां, ग्रामीण शहरी विकास आपस में जुड़े हुए हैं क्योंकि शहरीकरण की तेज प्रगति ने ग्रामीण क्षेत्रों में नई तकनीकों का विकास किया है तथा कंपनियों का उद्भव और निर्माण ने ग्रामीण जीवन पर अपना महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़ा है। स्पेशल इकोनामिक जोन इसका एक उदाहरण माना जा सकता है।
एलपीजी रिफॉर्म्स इस वर्ष जुलाई में 32 साल हो जाएगें और इन 32 सालों में प्रौद्योगिकी और आर्थिक वैश्वीकरण और संसाधनों की पहुंच ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच के जुड़ाव में वृद्धि हुई है तथा देश में intra and inter connectivity को भी बढ़ाया है।
समय के साथ अवधारणा कैसे विकसित हुई है? (How has the concept evolved over the time? )
- ग्रामीण-शहरी सातत्य की अवधारणा समय के साथ-साथ विकसित हुई है। इस शब्द का प्रयोग इस तथ्य को पहचानने के लिए किया गया था कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शायद ही कोई अंतर स्पष्ट हो सके। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच निरंतरता का विचार विभिन्न कारकों जैसे व्यवसायिक, विविधीकरण, साक्षरता में वृद्धि, शिक्षा, संचार, विचारों और जीवन शैली के संपर्क में आने के कारण बड़ा है।
- ग्रामीण-शहरी सातत्य की अवधारणा को लोक, ग्रामीण और शहरी सामाजिक संगठन में निरंतरता के रूप में एक आसान तरीके से व्याख्या की जा सकती है जैसे गांवों समय के साथ-साथ कस्बों में तब्दील हो जाते हैं और कस्बे समय के साथ-साथ शहरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। यह शहरों से उनकी निकटता तथा नजदीकी पर निर्भर करता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच के संबंधों को अधिक बारीकी से समझने के लिए ग्रामीण शहरी निरंतरता को शुरू किया गया था। हालांकि इसमें अन्य समाजों को समझने में भी अपना योगदान दिया यह अवधारणा सामाजिक, भौगोलिक स्थानों का अध्ययन करने में महत्वपूर्ण साबित रही है जहां जीवन शैली और जीवन स्तर में इतना बदलाव आया कि वह शहरों के समान प्रतीत होने लगे।
Impact of Rural-Urban Continuum
ग्रामीण शहरी निरंतरता की अवधारणा का भारत पर निम्नलिखित तरीकों से महत्वपूर्ण पड़ा प्रभाव पड़ा है:
- भारत में कस्बा और गांव का विलय एक सामान्य घटना है।
- ग्रामीण-शहरी निरंतरता कई सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ गांव और कस्बों व शहरों के बीच सामाजिक, आर्थिक संपर्क का एक क्रम है।
- इस अवधारणा ने भारत में गांव से शहरों तक निरंतरता की समझ में मदद की है।भारत में ग्रामीण शहरी सत्यता अवधारणा के सफल कार्यान्वयन का एक उदाहरण वारनानगर और केरल है।
- वारनानगर यह महाराष्ट्र पर एक छोटा सा शहर है, जहां कृषि उद्योग को विकसित करके अपने कृषि क्षेत्र को सफलतापूर्वक बना दिया है। शहर ने सड़कों ,पानी बिजली की आपूर्ति और स्वच्छता सुविधाओं सहित अपने बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया है।
- भारत की जनगणना शहरीकरण को परिभाषित करने के लिए प्रशासनिक और कार्यात्मक दोनों मापदंडों का प्रयोग करती है जो भारत के लिए अद्वितीय है।
- भारत की जनगणना एक शहरी क्षेत्र को 5000 से अधिक लोगों की आबादी वाले स्थान के रूप में परिभाषित करती है जहां कम से कम 75% पुरुष कामकाजी आबादी गैर-कृषि गतिविधियों में लगी हुई है।
- ग्रामीण प्रवासियों में गरीबी, बेरोजगारी, बेरोजगारी, चोरी, डकैती, चोरी, भिक्षावृत्ति और अन्य सामाजिक बुराइयों जैसी गंभीर सामाजिक आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है। तथा ग्रामीण-नगरीय सातत्य शहरीकरण की कठिनाइयों को कम करने में मदद कर सकता है।
- स्मार्ट गांव बनाने में मददगार साबित हो सकता है।
ग्रामीण-शहरी सातत्य अवधारणा को लागू करने में भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। तकनीक और वित्तीय क्षमता और संरचनाओं नीति और संसाधनों का विखंडन कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो ग्रामीण और शहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए संबोधित करने की जरूरत है। तथा असमानता और लैंगिक अंतराल खराब बुनियादी ढांचे की कमी, शासन संरचना की सीमित प्रभावशीलता भी कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें टिकाऊ शहरी विकास के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है।
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