India, China and Tawang

 भारत - चीन और तवांग {India, china and Tawang}

Indo-china
(Indo-china and Tawang Conflict) Image source: https://www.istockphoto.com/

चीन अपनी पुरानी हरकतों से बाज नहीं आया हैं, एक बार फिर चीन ने लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल का उल्लंघन करके भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में घुसपैठ करने की कोशिश कि तथा भारतीय सैनिकों को इसकी सूचना लगते ही चीन के पीएलए सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प देखने को मिलती हैं। खबरों के अनुसार इस झड़प में दोनों देशों के किसकी भी सैनिक को जान-माल की हानि नहीं हुई हैं। 


पृष्ठभूमि :-

भारतीय सेना द्वारा ज़ारी अधिसूचना में बताया गया हैं, कि चीन के लगभग 300 -600 पीएलए(पीपल लिबरेशन आर्मी) सैनिकों ने Line of Actual Control (LAC) का उल्लंघन करके तवांग क्षेत्र की सीमा में आ गए थे। इस गतिविधि की ख़बर जैसे ही भारतीय सैनिकों को मिलती हैं तब भारतीय सैनिकों की संख्या लगभग 70 से 80 के बीच थीं, लेकिन भारतीय सैनिकों ने भी अपनी संख्या पर ध्यान न देकर चीन सैनिकों का बहादुरी से सामना किया और उन्हें वैसे अपनी पोस्ट पर जानें के लिए मजबूर कर दिया। हालांकि इस मुठभेड़ में किसी भी सैनिक को कोई गंभीर चोट नहीं आई हैं। 1962 के युद्ध में तवांग पर अपना प्रभुत्व स्थापित था। परन्तु कुछ समय के पश्चात चीन ने स्वैच्छिक रूप से तवांग भारत को लौटा दिया था। लेकिन अब चीन यांग्त्से (Yangtse) पर अपना हक़ जता रहा हैं,पर अब भारतीय सेना किसी भी हालत में अपने कदम पीछे नहीं हटाएगी और भारतीय सरकार भी भविष्य की हर संभावनाओं के लिए भी पूरी तरफ तैयार हैं। 

तवांग इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं :-


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Image Source : https://cimsec.org/(Graphic news)


 1. राजनीतिक महत्व 

चीन के लिए तवांग राजनीतिक रूप ने बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अरुणाचल प्रदेश {तवांग} पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य हैं तथा तिब्बत, भूटान और म्यांमार जैसे तीन देशों की सीमा भी तवांग से मिलती हैं। इतना ही नहीं तवांग, अरुणाचल प्रदेश व इन तीनो देशों के बीच एक सुरक्षा कवच का काम करता हैं। 

2. सांस्कृतिक महत्व 

सांस्कृतिक महत्व पर नज़र माने  तो पता चलता हैं, कि तवांग ही वह राज्य हैं, जहाँ से 1959 में दलाई लामा भारत आये थे तथा तवांग में कई तिब्बती बौद्ध मठ स्थित हैं। 


3. प्राकृतिक महत्व 

अरुणाचल प्रदेश प्राकृतिक स्रोत से समृद्ध राज्य हैं। जैसे - जल विद्युत् क्षमता, खेज,तेल, गैस, लाइमस्टोन, संगमरमर आदि। 


4. सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास 

 सिलीगुड़ी कॉरिडोर ही एक ऐसा माध्यम जो भारत को उत्तर पूर्व ने जोड़ कर रखता हैं, और यदि चीन तवांग के द्वारा सिलीगुड़ी कॉरिडोर को नियंत्रण कर लेता हैं,तो वह सरलता से उत्तर पूर्व पर आक्रमण कर सकता हैं। तथा भारत से उसकी कनेक्टिविटी भी टूट जाएगी। 
 
5. सेना पर नियंत्रण 

तवांग के द्वारा चीन भारतीय सेना के लिए आने वाले संसाधन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकता हैं, जिसके कारण भारतीय सैनिकों की रक्षा क्षमता को कमज़ोर कर पाएगा। 

6. तिब्बत के क़रीब 

चीन तिब्बत पर हमेशा से ही अपना दावा करता आया हैं, तो चीन को डर हैं कि तिब्बत भारत के  प्रभाव में आकर लोकतांत्रिक प्रणाली का समर्थक न हो जाए।  


चीन ऐसा क्यों कर रहा हैं :-

 चीन के साथ सीमा संघर्ष भारत के लिए नया अनुभव नहीं हैं। पहले कई बार चीन ऐसे सीमा तनाव को अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए करता आया हैं तथा इस तनाव के पीछे का कारण निम्न हैं --
  • भारत व संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य 'युद्ध अभ्यास ' नामक अभ्यास को लेकर चीन की नाराजगी। 
  • ' जीरो कोविड नीति ' को लेकर चीनी जनता ने चीन सरकार की इस नीति को लेकर विरोधी प्रदर्शन हो रहा हैं। 
  • लोगों का ध्यान भटकाने का एक माध्यम। उदाहरण के लिए 2020 में कोविड महामारी के दौरान लोगों का ध्यान भटकाने के लिए गलवान घाटी में सैनिकों के बीच झड़प। 

भारत - चीन के मध्य विवाद 
  •  दोनों देश 3488 km की सीमा को साझा करते हैं, जिसमें तीन क्षेत्र आते हैं -पश्चिम  (अक्साई चीन, लद्दाख), मध्य क्षेत्र(हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) एवं पूर्वी (सिक्किम , अरुणाचल प्रदेश)। 
  • अक्साई चीन का विवाद 1860 के दशक में जॉनसन लाइन के कारण पैदा हुआ। जॉनसन लाइन लद्दाख और चीन के बीच की सीमा का निर्धारण करती हैं, तथा जॉनसन लाइन के तहत अक्साई चीन भारत का हिस्सा हैं, परन्तु चीन इस सीमा रेखा को मान्यता नहीं देता और इसी कारण से 1962 के युद्ध में चीन ने अक्साई चीन परअपना अवैध रूप से कब्ज़ा स्थापित कर लिया। इतिहास में भी अक्साई चीन और लद्दाख भारत का ही हिस्सा रहे हैं।  भारत द्वारा 1899 में चीन को भेजे गए एक पत्र में यह स्पष्ट कर दिया कि अक्साई चीन भारतीय प्रदेश हैं। 
  • मध्य सीमा में मुख्यतः हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आते हैं, तथा मध्य सीमाको लेकर कोई ख़ास विवाद नहीं हैं। 
  •  पूर्वी सीमा के अंतर्गत सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश आते हैं। सिक्किम की बात करें तो 16 मई 1975 का हिस्सा बना और इससे बाद से सिक्किम को लेकर भारत ओर चीन के बीच कोई ख़ास विवाद देखने को नहीं मिला हैं। 
  •  पूर्वी क्षेत्र में बड़ा विवाद अरुणाचल प्रदेश को लेकर हैं।  
अरुणाचल प्रदेश विवाद/मैकमोहन लाइन

इस विवाद की शुरुआत में मैकमोहन लाइन की बहुत बड़ी भूमिका रही हैं। इसका आरम्भ वर्ष 1914 में आयोजित शिमला सम्मलेन से होता हैं, जब ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन गणराज्य तीनों की बैठक हुई। तीनों इकाइयों के प्रतिनिधियों ने मिलकर औपचारिक रूप से अपनी-अपनी सीमाओं का निर्धारण करना था। इस समझौते के अनुसार तिब्बत को एक स्वायत्त राष्ट्र रूप में मान्यता मिल जाएगी और अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा होगा। परन्तु चीन को यह मंजूर नहीं था इसलिए उसने इस समझौते इंकार कर दिया।लेकिन फिर भी समझौते पर भारत और तिब्बत ने हस्ताक्षर कर दिए और मैकमोहन लाइन निर्धारित हो गयी। यही कारण हैं कि चीन इस समझौते को अवैध मानता हैं और आज भी अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानें बैठा हैं। 

उत्तर पूर्व में बुनियादी ढाँचे का विकास 
 भारत और चीन के बीच चल रहे लगतार सीमा तनाव के कारण भारत ने भी पूरी तैयार कर रखी हैं वर्तमान समय में भारत ने नॉर्थ- ईस्ट में लॉन्ग रेंज तैनात कर रखी हैं। जो अत्यधिक शक्तिशाली हैं -
  • Smerch Rocket Launching system 
  • Pinaka  Rocket Launching system
दीर्घकालिक समस्याओं के लिए बनाया गया ढांचा निम्नलिखित हैं -

1. विकसित गाँव - भारतीय सरकार ने आस पास कई गावों का बसाये ताकि जब चीन की तरफ लाइन ऑफ़ एक्चुअली कण्ट्रोल के उल्लंघन हो तो इन गांव को शिविरों में तब्दील कर सके। 

2. विकसित सड़कें - पिछले कई वर्षों में भारत ने LOC के पास 2000km से अधिक सड़कों का निर्माण किया हैं, तथा 2014 से 2019 तक हर दिन 1.5 km राजमार्गों निर्माण होता रहा। 

3. सुरंगों का विकास - भारत टनल्स का भी निर्माण कर रहा हैं जिसमें Syama Prasad Mookerjee Tunnel /चेनानी - नाशरी सुरंग  शामिल हैं। जो भारत की सबसे लम्बी सुरंग हैं। 

4. रेलवे एवं ब्रिज का विकास - भारतीय सरकार द्वारा चार सामरिक रेलवे के लिए मंजूरी दे दी हैं। तथा 24 ऐसे पुलों का निर्माण किया गया है जो भारी सामान को आसानी से संभाल सकता हैं ताकि जब संघर्ष की संभावनाएं हो तो भारत पूरी तरह तैयार रहे। 

5. एयरपोर्ट्स का निर्माण- लगभग  31 नये एयरपोर्ट्स का निर्माण किया ताकि फाइटर जेट ,चॉपर आदि के लिए सुविधा हो और जल्द से जल्द सीमा पर हो गतिविधि की जाँच की जा सके आदि। 
 
भारत और जापान

जापान ने भारत के नार्थ ईस्ट क्षेत्र में 13000 करोड़ का निवेश किया हैं, जिसमें नार्थ ईस्ट के विकास में उपयोगी होगा। साथ ही चीन के खिलाफ़ भारत और जापान एक हैं,क्योकि दोनों ही चीन के वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव का हिस्सा नहीं हैं। दोनों देशो की पालिसी एक ही है  जापान की 'Free and Open Indo-Pacific' और भारत की  India Act East Policy'। जिसके लिए नार्थ ईस्ट बहुत मायने रखता हैं। 


भारत और चीन दोनों के संबंधो में तनाव व शक्ति की प्रवत्ति देखने को मिलती हैं। 2017 में डोकलाम गतिरोध एवं 2020 का गलवान संघर्ष और अब तवांग में LOC का उल्लंघन इस बात प्रमाण हैं कि चीन रणनीतिक रूप से सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में आगे कदम नहीं बढ़ाना चाहता हैं। पर इन सब में स्थानीय लोगों को कई तरह के संकटों का सामना करना पड़ता हैं। 



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1 Comments

  1. I liked your way of telling that you told and explain things from a multi-dimensional perspective. Which is impressive , Keep it up. 👍🏻

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