"मेरा राज्य जल रहा है" यह दुख भरा संदेश मैरी कॉम ने केंद्र सरकार से गुहार लगाते हुए भेजा। हममें से अधिकतर लोग इस बात से परिचित हैं कि इस समय मणिपुर राज्य के हालात कितने खराब है, कई लोगों की जान जा चुकी है जिसमें कई अफसर भी शामिल है जान माल की हानि हो रही है ऐसी स्थिति दिन प्रतिदिन बढ़ रही है जिसका उदाहरण हम रोज अखबारों में. न्यूज़ में, सोशल मीडिया पर देख सकते हैं इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने मणिपुर राज्य में सेना की तैनाती के आदेश दे दिए हैं। राज्य में इंटरनेट सेवाएं बंद है, कर्फ्यू लग चुका है यहां तक की शूट एंड साइट के ऑर्डर भी जारी कर दिए गए हैं।
इन सभी बातों से पता चलता है कि समस्या कितनी गंभीर है। आखिर हालात इतने कैसे बिगड़ गए आइए जानते हैं मेरे साथ। इस घटना के शुरुआत तब होती है जब मणिपुर के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के जंगल को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए जिसका परिणाम यह निकला कि कई इलाकों में से कई गांव में से कुकी की जनजाति को बेदखल होना पड़ा। कुकी जनजाति का कहना है कि राज्य सरकार ने हमें कोई भी पूर्व आदेश या सूचना प्रदान नहीं की वही मुख्यमंत्री का कहना है कि यह एक इलीगल सेटलमेंट है।
दूसरा कारण हम मान सकते हैं जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ने अपना सॉलि़डे मार्च के लिए लोगों से अपील की और इस रैली के दौरान एक अफवाह फैल जाती है की कुकी जनजाति की एक महिला के साथ बदसलूकी तथा छेड़छाड़ हुई है जिसके कारण उस रैली में झड़प हो जाती है।
अन्य कारण यह है कि 2013 से मेइती जनजाति की शेड्यूल्ड ट्राइब रिजर्वेशन की मांग जिसे लेकर कुकी तथा राज्य के अन्य जनजाति नाखुश है। मेइती जनजाति का कहना है कि वह यह रिजर्वेशन डिजर्व करते हैं क्योंकि वह अपने पूर्वजों की जमीन को, अपनी संस्कृति का संरक्षण करना चाहते हैं तथा बांग्लादेश और म्यांमार से आ रहे अवैध शरणार्थियो से अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं।
कुकी तथा राज्य के अन्य जनजातियों इसे पूर्णता नकारते हुए कहा कि राज्य में पहले से ही मेइती जनजाति का वर्चस्व स्थापित है तथा यह आज से नहीं कई वर्षों से है इसका उदाहरण हम इस तरीके से समझ सकते हैं कि मणिपुर के सबसे अधिक मुख्यमंत्री मेइती जनजाति के हैं। कुकी जनजातियों को लगता है कि यदि राज्य में इनर लाइन परमिट जारी हो गया तो मेइती जनजाति के लोगों की तथा अन्य विभिन्न जनजातियों को भी अवैध शरणार्थी समझकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित ना कर दे।
मणिपुर राज्य में विभिन्न तरीके की जनजातियों का निवास है मणिपुर स्वयं ही विभिन्न जनजातियों के नाम से जाना जाता है परंतु मणिपुर में मेइती और को की जनजातियों का इतिहास बहुत पुराना है जिसमें मणिपुर में कई वर्षों तक मेइती जनजातियों का साम्राज्य रहा था। परंतु 1817 ईस्वी में बर्मा ने मणिपुर पर आक्रमण कर दिया तथा विजय प्राप्त कर ली। जिसके पश्चात मेरी जनजातियों को कई शोषण का शिकार होना पड़ा।
इसके पश्चात 1826 में जब अंग्रेजों ने फर्स्ट एंगलो बर्मा युद्ध जीता लिया और अपने डिवाइड एंड रूल की नीति को लागू कर दिया। जिसके कारण मेइती, कुकी और अन्य जनजातियों के बीच तनाव और बढ़ गया। तनाव आजादी के बाद भी बना रहता है। भौगोलिक रूप से मणिपुर कब भारत के लिए बहुत अधिक महत्व है क्योंकि वह चाइना और म्यांमार की सीमा से लगता है जिसके कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे सकता है जिसके चलते भारतीय सरकार ने 1949 में जब मणिपुर को Union Territory का दर्जा दिया।
1972 में मणिपुर से यूनियन टेरिटरी का दर्जा लेकर एक सामान्य राज्य के रूप में स्थापित कर दिया जाता है। इसी दौरान मणिपुर में पहले लोकतांत्रिक चुनाव का आयोजन भी होता है तथा इसी दौरान मेइती जनजाति से उनके अनुसूचित जनजाति का दर्जा भी ले लिया जाता है तथा कई अन्य जनजातियों को दे दिया जाता है जिसके अंतर्गत को की तथा अन्य जनजाति मणिपुर में कहीं पर भी जमीन खरीद सकते हैं परंतु मेइती जनजाति ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि उनका जनसांख्यिकी लाभांश उस समय भी कुकी तथा अन्य जनजातियों से अधिक था।
हर समस्या का समाधान हो सकता है और इस समस्या का समाधान है जिसे हम आर्थिक रूप से सुलझा सकते हैं जिसका उदाहरण 2002 में गुजरात के दंगों से समझा जा सकता है 2002 में जब गुजरात के दंगे हुए थे तो केवल दंगे अहमदाबाद तक ही सीमित रहे थे सूरत में दंगे नहीं हुए क्योंकि उस समय हिंदू और मुसलमान दोनों ही एक दूसरे पर आर्थिक रूप से निर्भर थे. जो कि अहमदाबाद में नहीं थे। तो यदि मणिपुर अर्थात नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान किया जाए तो इस समस्या का समाधान भविष्य में हो सकता है।
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