The CEC and Other ECs (Appointment, Conditions of Service and Term of Office) Bill, 2023


Election Commission of India


हम सभी इस बात से परिचित है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है तथा लोकतंत्र का आधार चुनाव होते हैं और यदि चुनाव में निष्पक्षता और पारदर्शिता का अभाव महसूस हो तो लोकतंत्र कैसे निष्पक्ष और पारदर्शी रह पाएगा? चुनाव आयोग की स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी 1950 को हुई थी तथा संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 आयोग और सदस्यों की शक्ति, कार्य-कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित है। 

भारतीय चुनाव आयोग को भारत के लोग व्यापक रूप से एक विश्वसनीय और जिम्मेदार संस्थान मानते आए हैं। चुनाव आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सीधे भारत के संविधान द्वारा स्थापित स्थाई और स्वतंत्र संस्था है। भारतीय संविधान के भाग XV चुनाव से संबंधित है तथा इन मामलों के लिए एक आयोग की स्थापना करता है।

मुद्दा यह है कि सरकार और न्यायपालिका वर्तमान में भारत के चुनाव आयोग की नियुक्ति पर अपना असंतोष जताया है।  भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए सरकार संसद द्वारा कानून बनाने का प्रावधान है, लेकिन अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) के लिए कोई नियुक्ति कानून उपस्थित नहीं है। 

परंतु मानसून सत्र 2023 में सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति, शर्तें और कार्यकाल) विधेयक को सूचीबद्ध किया। केंद्र का विधायक भारत के चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन के लिए समिति स्थापित करने का प्रयास करता है जिसमें शामिल प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री तथा यह नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएंगी। केंद्र द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक में मुख्य न्यायाधीश को स्थान प्राप्त नहीं है। आइए इस विधेयक को विस्तार से समझते हैं :-


मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने फैसला सुनाया कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। उनकी नियुक्तियों पर संसद द्वारा एक कानून बनाया जाता है। यह फैसला नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली 2015 की जनहित याचिका (पीआईएल) से सामने आया। 


न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अगुवाई वाली पीठ का फैसला 2015 की जनहित याचिका पर आया, जिसमें चुनाव आयोग के केंद्र द्वारा नियुक्त सदस्यों की प्रैक्टिस की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। 2018 में, SC की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 324 की बारीकी से जांच की आवश्यकता थी।


अनुच्छेद 324(2) में लिखा है: चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और उतनी संख्या में अन्य चुनाव आयुक्त, यदि कोई हों, शामिल होंगे, जो राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकते हैं और मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव की नियुक्ति करेंगे। आयुक्त, संसद द्वारा उस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, राष्ट्रपति द्वारा बनाए जाएंगे।

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सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने के उद्देश्य से राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया है। विधेयक सीईसी और ईसी का चयन करने वाले पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को हटाने का प्रावधान करता है। इस कदम से चयन समिति की संरचना और प्रक्रिया की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा छिड़ गई है। 

चूंकि संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा निर्धारित कोई संसदीय कानून लागू नहीं किया गया था, इसलिए न्यायालय ने "संवैधानिक शून्यता" को संबोधित करने के लिए कदम उठाया। विधेयक अब इस रिक्तता को दूर करने और चुनाव आयोग में नियुक्तियाँ करने के लिए एक विधायी प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है।


एक बहुचर्चित मुद्दा {A Much Debated Issue}: 


मुख्य चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर संविधान सभा के समय से ही इस पर बहस होती रही है। 1949 के संविधान सभा की बहस के दौरान भी एक सुझाव दिया गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में दो तिहाई बहुमत की पुष्टि की आवश्यकता होनी चाहिए। तथा इन नियुक्ति के संबंध में कानून बनाने की जिम्मेदारी संसद पर ही छोड़ दी गई थी। जिसके चलते वर्तमान समय में यह बिल/ विधेयक प्रस्तुत किया गया।


मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पर की गई विभिन्न सिफारिशें


 1975 जयप्रकाश नारायण द्वारा नियुक्त डीएम तरकुंडे समिति,1990 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह द्वारा चुनाव सुधारो पर दिनेश गोस्वामी समिति की स्थापना की गई और दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2009 में अपनी चौथी रिपोर्ट में सिफारिश दी। इन सभी का कहना था, कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के सदस्यों की नियुक्ति एक कॉलेजियम के माध्यम से होनी चाहिए। अर्थात यह केवल सरकार पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए जिसकी सलाह पर राष्ट्रपति यह नियुक्त करें।


2006 में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त बी. बी. टंडन ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक पद्धति का प्रस्ताव रखा था। टंडन ने नियुक्तियों की निगरानी के लिए 7 सदस्य समिति का सुझाव भी दिया था तथा समिति में शामिल होना वाले सदस्य की भी जानकारी भी उपलब्ध कराईं। सदस्य इस प्रकार है: लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता, कानून मंत्री, राज्यसभा के उपसभापति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा निमित्त सर्वोच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश। 


विधेयक की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?


A) चयन समिति की संरचना: चयन समिति में शामिल होंगे,

1. अध्यक्ष के रूप में प्रधान मंत्री,

2. सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता,

3. यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभाएगा।

4. प्रधान मंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।


B) खोज समिति {Search Committee }

सर्च कमेटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से नीचे के दो सदस्य भी शामिल होंगे जिनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होगा। विधेयक में सीईसी और ईसी के पदों पर विचार के लिए पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने के लिए एक खोज समिति की स्थापना का प्रस्ताव है।


C) पिछले अधिनियम को निरस्त करना {Repealing of Previous Act}

प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है। नए अधिनियम के पारित होने के बाद चुनाव आयोग का कामकाज उसके द्वारा नियंत्रित होगा। 1991 के अधिनियम में प्रावधान है कि ईसी का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा। विधेयक में प्रावधान है, कि सीईसी और अन्य ईसी का वेतन, भत्ता और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान होंगी।


D) सर्वसम्मति और बहुमत का निर्णय {Unanimity and Majority Decision}


विधेयक इस प्रावधान को बनाए रखता है कि चुनाव आयोग का कामकाज जब भी संभव हो सर्वसम्मति से हो। मतभेद की स्थिति में बहुमत का दृष्टिकोण मान्य होगा।


विधेयक की चिंताएँ क्या हैं? {What are the Concerns of the Bill?)


  •  शक्ति का संतुलन:

विधेयक में तीन सदस्यीय समिति में प्रधान मंत्री और एक कैबिनेट मंत्री (प्रधान मंत्री द्वारा नामित) शामिल होते हैं, विपक्ष के नेता के पास प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही अल्पमत वोट रह जाता है। इससे समिति के भीतर शक्ति संतुलन पर सवाल उठता है और क्या चयन प्रक्रिया वास्तव में स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है या कार्यपालिका के पक्ष में झुकी रहती है। 


  •  चुनावी शासन पर प्रभाव:

विधेयक में प्रस्तावित परिवर्तनों का ईसीआई की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है। चुनाव के संचालन में निष्पक्षता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है। चयन प्रक्रिया में कार्यपालिका का कोई भी कथित प्रभाव बिना पक्षपात के अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने की चुनाव आयोग की क्षमता के बारे में चिंताएँ पैदा कर सकता है।


  •  फ़्रेमर्स के इरादों के साथ संरेखण (Alignment with the Framers' Intentions) 


सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में इस बात पर जोर दिया था कि संविधान निर्माताओं का इरादा चुनावों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र निकाय का था। प्रस्तावित विधेयक के आलोचक इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या चयन समिति की नई संरचना चुनाव के लिए जिम्मेदार एक निष्पक्ष और स्वतंत्र निकाय बनाने के निर्माताओं के उद्देश्य के अनुरूप है।


आगे बढ़ने का रास्ता [Way forward]


सरकार को चयन समिति की संरचना की समीक्षा करनी चाहिए और इसे और अधिक संतुलित बनाने पर विचार करना चाहिए। इसमें निष्पक्ष निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए विपक्ष को एक मजबूत प्रतिनिधित्व देना शामिल हो सकता है।

चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए सरकार को स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को खोज समिति में या चयन समिति में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल करना चाहिए। उनकी उपस्थिति प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने में मदद कर सकती है।

विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले, सरकार को विभिन्न दृष्टिकोणों को इकट्ठा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए विपक्षी दलों, कानूनी विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ गहन परामर्श करना चाहिए कि चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाए।

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